माध्यमिक शिक्षा: स्वीकृत बल के आधे भी नहीं शिक्षक

कभी जनगणना तो कभी मतदान तो कभी अन्य तरह-तरह के कार्यक्रम। एक तो विद्यालय खुल नहीं पाते और खुलते भी हैं तो गुरुजी या तो अन्य किसी सरकारी कार्यक्रमों में इन्वाल्व होते हैं या फिर..। यानी किसी न किसी कारण से बच्चों की पढ़ाई अक्सर बाधित होती रहती है। या फिर बच्चों के हिसाब से गुरुजी का अभाव ही रहा करता है। अथक सरकारी प्रयास के बावजूद अभी भी विद्यालयों में विषयवार शिक्षकों का अभाव ही चल रहा है। तो ऐसे में कैसे होंगे बच्चे दक्ष और बिना द्रोण के कैसे बन पायेंगे बच्चे अर्जुन।
जिले के उच्च विद्यालयों में लगभग 600 शिक्षकों के पद स्वीकृत हैं जहां फिलहाल लगभग 300 शिक्षक मौजूद हैं। कारण है कि माध्यमिक विद्यालयों के लिए दूसरे चरण का नियोजन आज तक नहीं किया जा सका है। विद्यालयों में जहां शिक्षक हैं भी तो विषयवार नहीं। यहां तक कि गणित, अंग्रेजी और विज्ञान जैसे विषय के शिक्षकों का घोर अभाव चल रहा है। ऐसे में कैसे होंगे बच्चे दक्ष और कैसे पूरी होगी सरकार की मंशा।


नामांकन बनी समस्या
विद्यालयों का हाल है कि कहीं औकात से अधिक बच्चे नामांकित हैं तो कहीं बच्चों का कोरम मात्र पूरा किया गया है। विद्यालयों की स्थिति है कि हाजिरी भी नहीं ले पाते हैं शिक्षक। बच्चों की संख्या अधिक है और शिक्षकों का घोर अभाव। कोई भी विद्यालय ऐसा नहीं है जहां शिक्षक छात्र का अनुपात सही हो।
भले ही कागज में विद्यालय बंद नहीं भी हो। लेकिन विद्यालयों में अन्य कारणों से पढ़ाई तो बाधित रहती ही है।

नहीं है जिले में विद्यालय को कप्तान
जिले में कुल पचास उच्च व उच्चतर विद्यालय हैं जिसमें महज पांच विद्यालय को ही प्रधानाध्यापक है और 45 विद्यालय प्रधानाध्यापक विहीन हैं। व्यवस्था प्रभारी सिस्टम के तहत चलाया जा रहा है। ऐसे में दुरूस्त व्यवस्था की तो महज कल्पना ही की जा सकती है।

नहीं खुलता प्रयोगशाला
खेलकूद के सामान को यदि सेकेंडरी मान लें तो किसी भी विद्यालय में प्रयोगशाला भी नहीं खुल पाता है। भले ही सरकार की मंशा रही कि प्रत्येक विद्यालय संसाधनों के मामले में आत्म निर्भर हो जाये। लेकिन विद्यालयों की स्थिति है कि आपूर्ति किए सामान को आजतक कई विद्यालयों ने खोला भी नहीं।
रूटीन बनाना बनी समस्या
विद्यालय का हाल देखिये कि विद्यालयों का रूटीन बनाना समस्या बन गई है यानी किसी विद्यालय में अब रूटीन नहीं बन पाता कारण कि विद्यालय को तो शिक्षक ही नहीं है।
दिलचस्प बात है कि गर्मी और बरसात दोनों का मजा लेते हैं तटबंध के भीतर के विद्यालय। गर्मी में तो घोषित गर्मी छुट्टी है और बरसात तो उनके विद्यालय जाने लायक रहता ही नहीं।