अज़ीब शख़्स था, आँखों में ख़्वाब छोड़ गया

अज़ीब शख़्स था, आँखों में ख़्वाब छोड़ गया
वो मेरी मेज़ पे, अपनी किताब छोड़ गया

नज़र मिली तो अचानक झुका के वो नज़रें
मेरे सवाल के कितने जवाब छोड़ गया

उसे पता था, कि तन्हा न रह सकूँगी मैं
वो गुफ़्तगू के लिए, माहताब छोड़ गया

गुमान हो मुझे उसका, मिरे सरापे पर
ये क्या तिलिस्म है, कैसा सराब छोड़ गया

सहर के डूबते तारे की तरह बन 'श्रद्धा'
हरिक दरीचे पे जो आफताब छोड़ गया

अज़ाब – punishment / Pain
सराब- Illusion
आफताब- Sun



--श्रद्धा जैन,सिंगापुर (शोजन्य मधेपुरा टाइम्स)