क्या ये सिंघेश्वर मेला के अस्तित्व को मिटाने की साजिस है?


उजड़ा मेला उजड़ी उम्मीदें
रूद्र नारायण यादव/१८ मार्च २०११
प्रशासन द्वारा कल ही सिंघेश्वर मेला समापन की घोषणा ने सभी को असमंजस में डाल दिया है.ऐसा विगत कई वर्षों से नही हुआ था.पिछले वर्ष भी मेला करीब एक महीने तक रहा था.जाहिर है एक महीने तक रहने वाले प्रसिद्ध सिंघेश्वर मेले के प्रति लोगों का उत्साह चरम पर होता था.पर जिला प्रशासन ने श्रद्धालुओं,आम लोगों के साथ मेले से सम्बंधित व्यापारियों के भी उत्साह पर पानी फेर दिया है.बताते हैं की इस बार मेले में भीड़ काफी बढ़ रही थी.इस बार भी थियेटर,सर्कस,मौत का कुआं, विभिन्न प्रकार के झूलों समेत सैकड़ों आकर्षण मेले में आये थे.दरअसल व्यापारी वर्ग को भी मेले से काफी उम्मीदें बंधी रहती
खत्म हुआ ये खेल भी अब तो
है.बात स्स्फ़ है,ढेर सारे सामानों को लाने-ले जाने में काफी खर्च व परेशानी होती है
.अधिकाँश ने ये इस उम्मीद पर किया था कि एक महीने के इस मेले में खर्चा निकलने के साथ ही आमदनी भी होगी.कहा जाता है कि इसी वजह से बड़े व्यापारियों ने सिघेश्वर मेला न्यास परिषद को चंदे के रूप में भी बड़ी राशि प्रदान किया था.पर प्रशासन की मेला-समापन की घोषणा ने उन्हें हतोत्साहित कर दिया.कई दुकानदारों ने मायूस होकर कहा कि अब हो चुका,अगले साल से नही आयेंगे.जाहिर से बात है इसका घाटा इस पूरे क्षेत्र को होगा क्योंकि सिंघेश्वर एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो रहा था और ये मेला पूरे बिहार के लिए काफी महत्वपूर्ण था.
सबसे बड़ा सवाल उठता है कि आखिर क्यों प्रशासन ने ऐसा नादानी भरा कदम उठाया? कुछ स्थानीय लोग कहते हैं कि एसडीओ और डीएम को सिंघेश्वर मेले की संवेदनशीलता से कोई लेना देना नही है.वहीं कांग्रेस पार्टी के नेता व दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापक सूरज यादव ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक ज्ञापन सौंप कर मांग की है की सिंघेश्वर मेला को बर्बाद करने की साजिश की जांच की जाये तथा  मेला को समय से पहले समाप्त किये जाने के लिए पुलिस बल के अनैतिक तथा अनावश्यक प्रयोग के विरुद्ध करवाई की जाये. प्रो यादव ने मुख्यमंत्री से शिकायत की है कि मेले में आने वाले दुकानदारों, नौटंकी वालों, स्टंट वालों से मंदिर विकास के नाम पर अनुमंडल पदाधिकारी द्वारा मोटे रकम की वसूली की गयी है जिसकी उचित लेखा-जोखा रखे जाने पर संदेह है. प्रो सूरज यादव ने मुख्यमंत्री को सौंपे गए ज्ञापन में कहा है कि एक समय सिंघेश्वर मेला विख्यात थी तथा  एक बड़े पशु मेला के रूप में जानी जाती थी. सरकारी न्यास से संचालित होने पर फैले अव्यवस्था से दिनों दिन इसकी पहचान ही समाप्त हो रही है. अब महीने भर चलने वाले मेले को १४ दिनों में समाप्त कर इसके बचे- खुचे अस्तित्व को भी मिटटी में मिलाया जा रहा है. प्रो यादव ने मांग की है की अनुमंडल पदाधिकारी के इस तुगलकी फरमान को अविलम्ब वापस लिया जाये.
जो भी हो,सिंघेश्वर मेला अचानक समाप्त हो जाने से इलाके के लोगों को गहरा सदमा तो लगा ही है.