तवायफ: एक दर्द, एक कहानी.

हुश्न के जलवो की
देखो 
क्या अजब क्या बात है
घिसे देह आबरू अपनी
परोसे  जिस्म हर नयी रात है.
...
हवस की आग बुझाने  को 
लगा दी जिंदगी में जो आग है
हर सुबह बेवा बने वो 
हर रात उसकी सुहाग है.
...
जिस्म के चीथड़े लपेटे ,
रूह आज उसकी बदनाम है,
जिंदा गोस्त खाने जो दौड़े,
वो इस सितम पर क्यूँ हैरान हैं?
...
रोटी के टुकड़ों  के खातिर,
टुकड़े कपड़ों के हो गये,
जिस्म्फरोशों से हमे क्या,
मुसाफिर ये कह कर सो गये.


---सुब्रत गौतम "मुसाफिर"