आखिर क्यों .... !!

आखिर क्यों हर कदम पे
इनकी खुशियाँ लूट ली जाती है,
माँ बेटी बहन बहू का नाम देके
आवाज़ दबा दी जाती है,
जिस हाथ को पकड़ कर
था चलना सीखा,
उस हाथ को छोड़  हाय 
तूने कैसे तोड़ा रिश्ता,
कहीं पे मर्यादाओं की डोर से बांधा,
कहीं पे दिया है लोक लाज का वास्ता,
कहीं माओं को बेघर करते बेटे,
कहीं पे किसी बहन बेटी को
बेआबरू करते ये बेटे,
भारत माँ भी अब चीख-चीख
अपना दामन बचा रही है,
कम्पन करके धरती माँ भी
अपनी व्यथा सुना रही है,
रूह पर रख कर हाथ ये बोलो
क्या ये तुझे रुला रही है,
फिर क्यों हर कदम पे
इनकी खुशियाँ लूट ली जाती है !
जब पैदा हो कर आई तो
बाप भाई पर भार,
बड़ी होकर जब कुछ करना चाहा तो
तुम सब ने ऊँगली उठाई बार- बार,
हाँ डरते थे तुम .... हाँ डरते थे तुम ....
कहीं राज न हमारा छिन जाये,
सदियों से पुरुष प्रधान
नारी न आगे बढने पाये,
आखिर क्यों इनकी सिसकियाँ
तुम तक नहीं पहुंची,
क्यों दामन लूटने वाले हाथ न कांपे,
क्यूँ बुढ़ापे में सहारे देने वाले बेटे,
वृद्धा आश्रम तक छोड़ आते,
ना चाहते थे हम कुछ,
बस चाहते थे हम भी उड़ना
इन फिजाओं में तुम्हारी तरह,
ना चाहते थे कोई बंधन,
बस चाहते थे अपना एक अस्तिव  !

 
--जानवी अग्रवाल, कोलकाता.