शनि देव के ये है 3 सिद्ध धाम, साढ़ेसाती और शनि दोष का यहां होता है निदान


उज्जैन। 2 नवंबर से शनिदेव अपनी राशि बदल रहे हैं। शनि तुला से वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे। इस दौरान जिन लोगों को साढ़ेसाती या ढैय्या चल रहा है। उन्हें शनिदेव को मनाने के लिए उनकी आराधना करना चाहिए। साथ ही, शनि से जुड़ा दान करना चाहिए। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ ऐसे शनि मंदिरों के बारे में जिन्हें शनिदेव के सिद्ध पीठ माने जाते हैं। साढ़ेसाती, ढैय्या या शनि दोष से पीडि़त लोगों को शनि देव के इन धामों के दर्शन करने चाहिए। कहा जाता है कि इन मंदिरों में आराधना करने से शनि देव प्रसन्न हो जाते हैं। 

शनि देव धाम कोसीकलां-

शनि देव का एक सिद्ध धाम उत्तर प्रदेश में ब्रजमंडल के कोसीकलां गांव के पास है। यह सिद्ध पीठ कोसी से 6 किलोमीटर दूर है और नंद गांव से सटा हुआ है। यह शनि मंदिर भी दुनिया के प्राचीन शनि मंदिरों में से एक है। यहां मांगी मुराद बड़ी जल्दी पूरी होती है।

मंदिर से जुड़ी कहानी- मंदिर भगवान कृष्ण के समय से स्थापित है। जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था, उनके दर्शन करने के लिए सभी देवतागण गए थे, जिनमें शनिदेव भी थे, लेकिन माता यशोदा और नंदबाबा ने शनिदेव महाराज जी की वक्र दृष्टि होने की वजह से कृष्ण भगवान के दर्शन नहीं करवाए। इस बात से शनि महाराज को बड़ा दुख हुआ उन्होंने सोचा वक्र दृष्टि भी भगवान श्रीकृष्ण की ही दी हुई है इसमें मेरा क्या दोष। इस पर कृष्ण भगवान ने अपने भक्त के दुख को समझते हुए। शनि महाराज को स्वप्न में यह प्रेरणा दी कि नंदगांव से उत्तर दिशा में एक वन है वहां जाकर मेरी भक्ति करो तो मैं स्वयं आकर आपको दर्शन दूंगा।

शनि महाराज ने ऐसा ही किया। मान्यता है कि शनि देव की आराधना से प्रसन्न होकर श्री कृष्ण ने कोयल के रूप में शनि महाराज को उपरोक्त वन में दर्शन दिए और कोयल से रूपांतर होकर के उपरोक्त वन का नाम कोकिलावन पड़ा। माना जाता है कि श्रीकृष्ण ने शनि महाराज से कहा कि आज से आप यही पर विराजेंगे और यहीं विराजने पर आपकी वक्र दृष्टि नम रहेगी। मैं भी आप की बाईं दिशा में राधा जी के साथ यहीं पर विराजमान रहूंगा। जो भक्तगण अपनी किसी भी प्रकार की परेशानी लेकर के आप के पास आएंगे उसकी पूर्ति आपको करनी होगी और कलयुग में मेरे से भी ज्यादा आप की पूजा अर्चना की जाएगी।  कहते हैं कि यहां राजा दशरथ द्वारा लिखा शनि स्तोत्र पढ़ते हुए परिक्रमा करनी चाहिए। इससे शनि की कृपा प्राप्त होती है।

कैसे पहुंचे कोसीकलां जाने के लिए मथुरा सबसे आसान रास्ता है। मथुरा-दिल्ली नेशनल हाइवे पर मथुरा से 21 किलोमीटर दूर कोसीकलां गांव पड़ता है। कोसीकलां से एक सड़क नंदगांव तक जाती है। बस यहीं से कोकिला वन शुरू हो जाता है।

आसपास के दर्शनीय स्थल- यूं तो पूरा ब्रजमंडल ही देखने लायक है। 84 कोस की परिक्रमा में आप पूरा ब्रजमंडल घूम सकते हैं। कृष्ण की लीलाओं के कारण पूरा ब्रजमंडल ही कृष्णमय लगता है। जमाष्टमी पर तो यहां की रौनक देखते ही बनती है।
 
शनि शिंगणापुर-शनि देव के सबसे प्रसिद्ध और चमत्कारी धाम के रूप में महाराष्ट्र का शिंगणापुर जाना जाता है। इस गांव के बारे में कहा जाता है कि यहां रहने वाले लोग अपने घरों में ताला नहीं लगाते हैं। साथ ही, आज तक के इतिहास में यहां किसी ने चोरी नहीं की है।

ऐसी मान्यता है कि बाहरी या स्थानीय लोगों ने यदि यहां किसी के भी घर से चोरी करने का प्रयास किया, तो वह गांव की सीमा से पार नहीं जा पाता है। उससे पूर्व ही शनि देव का प्रकोप उस पर हावी हो जाता है। चोर को अपनी चोरी कबूल भी करना पड़ती है और शनि देव से माफी मांगनी होती है। 

कैसे पहुंचे- भारत के किसी भी कोने से यहां आने के लिए रेलवे सेवा का उपयोग भी किया जा सकता है। यहां पहुंचने वाले श्रद्धालु मुंबई, औरंगाबाद या पुणे ���कर शिंगणापुर के लिए बस या टैक्सी सेवा ले सकते हैं।
 
शनिश्चरा मंदिर ग्वालियर
मध्यप्रदेश के ग्वालियर के पास स्थित है शनिश्चरा मंदिर। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यह हनुमानजी के द्वारा लंका से फेंका हुआ अलौकिक शनि देव का पिंड है। इसलिए यहां शनिदेव का निवास है।

भक्तजन यहां तेल चढ़ाते हैं और अपने पहने हुए कपड़े, चप्पल, जूते आदि सभी यहीं छोड़कर घर चले जाते हैं। ज्योतिषीय मान्यता है कि ऐसा करके रुष्ट शनिदेव को मनाया जा सकता है। कहते हैं शनिश्चरा मंदिर में शनि शक्तियों का वास है, यहां की प्राकृतिक सुंदरता मन को बहुत लुभाती है। चारों ओर हरियाली ही हरियाली दिखाई पड़ती है।

कैसे पहुंचें - मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक शहर ग्वालियर में शनिश्चरा मंदिर है। ग्वालियर से बसों व टैक्सियों से भी शनिश्चरा पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा सीधी हवाई सेवा से देश के किसी भी कोने से ग्वालियर पहुंचा जा सकता है। राजमाता विजयाराजे सिंधिया हवाई अड्डे से शनिश्चरा मंदिर सिर्फ 15 किलोमीटर दूर है। यह ग्वालियर-भिंड रेलवे लाइन पर पड़ता है। ग्वालियर दिल्ली-मुंबई रेलखंड का प्रसिद्ध स्टेशन है। शनि अमावस्या पर यहां काफी भीड़ होती है, उस दिन कई स्पेशल ट्रेन और बसें मंदिर तक के लिए चलाई जाती हैं।