पतिव्रता (?) नारियाँ !

दो तरह की पतिव्रताएं देखने को मिलती हैं ....
एक - जो पति का जीना हराम रखती हैं
जीभर के गालियों से नवाजती हैं
हिकारत से देखते हुए
तीज और करवा चौथ करती हैं
चेहरा कहता है भरी महफ़िल में कि" मान मेरा एहसान .
जो मैं ये ना करूँ तो लम्बी आयु को तरस जाओगे ..."
और इस कमरे से उस कमरे गाती चलती हैं -
" भला है बुरा हैजैसा भी है , मेरा पति मेरा देवता है "
और इस तर्ज के साथ कई पति गुल !
...........................................................
दूसरी - जो हर वक़्त नज़ाकत में कुछ नहीं करती ...
एक ग्लास पानी तक नहीं देती
पर लोगों के बीच कहती हैं ,
" चलती हूँ , इनके आने का वक़्त हो चला है
- दिन भर के थके होते हैं
तो उनकी पसंद का कुछ बनाकर
चाय के संग देना अच्छा लगता है ..."
और लम्बे डग भरती ये चल देती हैं
घर में पति के आते ये एक थकी हारी मुस्कान देती हैं
नज़ाकत की बेल का हाथ थाम पति पूछता है -
" अरे , क्या हुआ ? "
पत्नी एहसान जताती कहती है -
" कुछ नहीं , पूरे दिन सर भारी भारी लगता रहा है ...
खैर छोड़ो , चाय बनाती हूँ ..."
बेचारा पति ! सारी थकान भूल कहता है -
' नहीं मेरी जान , मैं बनाता हूँ " .....
चाय पीकर फिर बाहर चलने का प्रोग्राम बनता है
लिपस्टिक और लम्बी सी मुस्कान लिए
हिम्मत दिखाती ,प्यार जताती पत्नी चल देती है
और पति कुर्बान !
.......... असली पतिव्रता को कुछ भी दिखाने की ज़रूरत नहीं पड़ती , .... वे तो बस होती हैं !

 
--रश्मि प्रभा,पटना