केवल बेटा ही कर सकता है ये काम, क्योंकि...



मृत्यु एक अटल सत्य है। जिसने जन्म मिला है उसे मृत्यु अवश्य प्राप्त
होगी। हिंदू धर्म में मृत्यु के संबंध में कई महत्वपूर्ण नियम बनाए गए हैं। जैसे सबसे महत्वपूर्ण नियम यह है कि माता-पिता की मृत्यु के बाद शव को मुखाग्नि पुत्र ही देता है। यदि मृत व्यक्ति का पुत्र है तो मुखाग्नि उसे ही देना है, ऐसा विधान है।     
शास्त्रों के अनुसार बारह प्रकार के पुत्र बताए गए हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं-औरस पुत्र, गोद लिया पुत्र, भाई का पुत्र, पुत्री का पुत्र, पुत्र का पुत्र, खरीदा हुआ पुत्र, कृत्रिम पुत्र, दत्त आत्मा आदि। यदि किसी मृतक का खुद का पुत्र ना हो तो इन 12 प्रकार के पुत्रों में से कोई पुत्र मृतक को मुखाग्नि दे सकता है।

 यदि किसी मृतक की पुत्री मुखाग्नि देती है तो यह शास्त्रों के अनुसार अनुचित बताया है। किसी कन्या या महिला को शमशान में आने का भी अधिकार नहीं दिया गया है। अत: मृतक कोई महिला या कन्या मुखाग्नि नहीं दे सकती है। ऐसा शास्त्रों में वर्णित है।

मृतक चाहे माता हो या पिता अंतिम क्रिया पुत्र ही संपन्न करता है। इस संबंध में हमारे शास्त्रों में उल्लेख है कि पुत्र पु नामक नर्क से बचाता है अर्थात् पुत्र के हाथों से मुखाग्नि मिलने के बाद मृतक को स्वर्ग प्राप्त होता है। इसी मान्यता के आधार पर पुत्र होना कई जन्मों के पुण्यों का फल बताया जाता है।
पुत्र माता-पिता का अंश होता है। इसी वजह से पुत्र का यह कर्तव्य है कि वह अपने माता-पिता की मृत्यु उपरांत उन्हें मुखाग्नि दे। इसे पुत्र के लिए ऋण भी कहा गया है।