‘मेरा तो स्वर्ग लुट गया...’//असित रंजन

कुछ कहते-कहते रुक गयी वो
निगाहें झुक गयी
कदम भी गए थे रुक.
मैं भी तो लिख रहा था
उसी के बारे में
न जाने क्यों उसे देखकर
कलम मेरी गयी थी रुक.
रूप ऐसा जैसे चाँद उतर 
आया हो जमीन पर
भवें खंजर सी नुकीली
आँखें झील सी गहरी और नीली.
मैं ठगा सा देखता रहा एकटक
उस संगमरमरी मूर्ति को.
मुझे देखता पा वह सकपकाई
अपनी भूल समझ में उसके आई
उसको स्पंदित होता देख
मेरा भ्रम टूट गया.
आह निकली मुंह से
मेरा तो स्वर्ग लुट गया.
--असित रंजन, मधेपुरा