लुट रही अस्मत किसी की
जनता तमाश बीन है ;
इंसानियत की निगाह में
जुल्म ये संगीन है .
चैनलों को मिल गयी
एक नयी ब्रेकिंग न्यूज़
;
स्टूडियों में जश्न है
मौका बड़ा रंगीन है .
अखबार में छपी खबर
पढ़ रहे सब चाव से ;
पढने के शौक़ीन हैं .
ये हवस की इंतिहा' है
इससे ज्यादा क्या कहें
?
कर न लें औरत को नंगा
ये मर्द की तौहीन है .
बीहड़ बनी ग़र हर जगह
कब तक सहेगी जुल्म ये ;
कई और फूलन आएँगी
पक्का मुझे यकीन है.
--शिखा कौशिक, शोध छात्रा