देह से परे

स्त्री देह ही नहीं ...
किसी भी देह से परे बहुत कुछ होता है
जहाँ प्यार ख्याल एहसासों की तहरीर होती है
लिखे होते हैं कुछ अनगाये गीत
लहराती हैं कुछ कोपलें
बया के घोसले सा होता है एक ख्याली घर
जिसमें सपनों के खिलौने होते हैं
ना तोड़ो उस खिलौने को
तो सामर्थ्य अदभुत होता है
धरती आकाश एक करने की क्षमता होती है ...
देह तो आधार है विश्वास का
इसमें सृष्टि का प्रकृत गान होता है
अर्धनारीश्वर का सत्य प्रस्फुटित होता है
....................
माँग, ज़रूरत तो दोनों की है
और पूर्णता का आभास
छिनने में नहीं
आपसी समर्पण में है
द्वैत से अद्वैत की यात्रा आपसी स्वीकृति में है
देह तीर्थ है
इसकी यात्रा बड़ी लम्बी होती है
सिर्फ आस्था ही हर मनोकामना पूरी करती है !...



--रश्मि प्रभा,पटना