रविवार विशेष- कविता- दहेज़ एक सामाजिक बुराई

दहेज़ का लालची समाज है हमारा,
बेटे को बेच कर इज्जत है कमाता,
दहेज़ के पैसे से बंगला बनाकर,
लोभी इंसान अमीर कहलाता,
बेटे के जन्म पे खुश हो जाता,
बेटी जन्मे तो शोक है मनाता,
दहेज के लिए बेटे को अफसर बनाता,
दहेज़ न मिले तो बहू  को जलाता, 
अपनी इज्जत को खाक में मिलाता,
बेटे को बेचने से फायदा क्या है,
अपनी इज्जत गवांने से फायदा क्या है, 
मेहनत के पैसे से इज्जत बनाओ, 
छोड़ो ये रस्मो रिवाज,
समाज में अपनी अलग पहचान बनाओ,
सामाजिक बुराइयों को जड से मिटाके,
विकसित और प्यारा देश बनाओ |
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पल्लवी राय,मधेपुरा