तेरे बगैर लगता है, अच्छा मुझे जहाँ नहीं


तेरे बगैर लगता है, अच्छा मुझे जहाँ नहीं

सरसर[1] लगे सबा[2] मुझे, गर पास तू ए जाँ नहीं

कल रात पास बैठे जो, कुछ राज़ अपने खुल गये
टूटा है ऐतमाद बस, ये तो कोई ज़ियाँ[3] नहीं

मैं जल रही थी मिट रही, थी इंतिहा ये प्यार की
अंजान वो रहा मगर, शायद उठा धुआँ नहीं

कुछ बात तो ज़रूर थी, मिलने के बाद अब तलक
खुद की तलाश में हूँ मैं, लेकिन मेरे निशाँ नहीं

दुश्मन बना जहान ये, ऐसी फिज़ा बनी ही क्यूँ
मेरे तो राज़, राज़ हैं, कोई भी राज़दां नहीं

अंदाज़-ए-फ़िक्र और था श्रद्धाज़ुदाई में तेरी
कह कर ग़ज़ल में बात सब, कुछ भी किया बयाँ नहीं   
शब्दार्थ:
  1.  रेगिस्तान की गर्म हवा
  2.  ठंडी हवा
  3.  नुकसान
 


श्रद्धा जैन,सिंगापुर(madhepuratimes)