काश एक दिन ऐसा हो........
सवेरे-सवेरे जब मैं जागूं
हर सुबह से बेहतर सुबह हो,
सूरज की रोशनी से इतना दम मिला जाए
हर किसी के जिंदगी में
खुशियों के लिए जगह कम पड़ जाए.
मुझे तलाश है उस नया सवेरा की
जिसके आते ही हर कोई मुस्काये
हर किसी का गम खुशियों में बदल जाये
कोई दुखी और कोई परेशान न हो
लाचार और बेबस कोई इंसान न हो.
किसी के दिल में कोई मलाल न हो
हर कोई खुशियाँ और गम सबसे बांटे
हर दिन होली और दिवाली हो रातें.
क्यों अपने को बड़ा जताते हो?
खुद को सबसे बड़ा और बेहतर बताकर
क्या मिलेगा जिंदगी में तनहा रहकर
जलना है तो जलो,जिंदगी में दीपक बनकर
जो खुदको जलाकर रोशनी भरता है
फिर भी खुद को खुशनसीब समझता है.
कही किसी पर जुर्म और अत्याचार न हो
किसी इंसान का दिल इतना बेरहम और खूंखार न हो
भगवन है तो ऐसा हो ही नही सकता कि शैतान न हो
पर ऐसी कोई समस्या नही जिसका निदान न हो
काश! एक दिन ऐसा सवेरा आये
हर कोई एक दूसरे के बारे में सोचें.
हार जीत और मुकाबला का जकर न हो
हार जायेंगे हम और जीत जायेगा वो
इस बात का किसी को फ़िक्र न हो
मुझे तलाश है उस नए सवेरे की
जिसमे कोई हतोत्साहित और निराश न हो.
--प्रीति,मधेपुरा