हाँ, मैंने गुनाह किया


हाँ,
मैंने गुनाह किया
जो चाहे सजा दे देना
जिस्म की बंदिशों से हाँ,
मैंने गुनाह किया
जो चाहे सजा दे देना
जिस्म की बंदिशों से
रूह को आजाद कर देना
हंस कर सह जाऊँगा
गीला ना कोई
लब पर लाऊंगा
नही चाहता कोई छुड़ाए
उस हथकड़ी से
नही कोई चाहत बाक़ी अब
सिवाय इस एक चाह के
बार बार एक ही
गुनाह करना चाहता हूँ
और हर बार एक ही
सजा पाना चाहता हूँ
हाँ,सच मैं
आजाद नही होना चाहता
जकड़े रखना बंधन में
अब बंधन युक्त कैदी का
जीवन जीना चाहता हूँ
बहुत आकाश नाप लिया
परवाजों से
अब उड़ने की चाहत नहीं
अब मैं टहरना चाहता हूँ
बहुत दौड़ लिया जिंदगी के
अंधे गलियारों में
अब जी भरकर जीना चाहता हूँ
हाँ,मैं एक बार फिर
प्यार करने का
गुनाह करना चाहता हूँ
प्रेम की हथकड़ी से
ना आजाद होना चाहता हूँ
उसकी कशिश से ना
मुक्त होना चाहता हूँ
और ये गुनाह मैं
हर जन्म,हर युग में
बार-बार करना चाहता हूँ 
वंदना गुप्ता,दिल्ली

दूल्हा-दुल्हन की मांग में सिंदूर क्यों भरता है?

हमारे देश में विवाह संस्कार से जुड़ी अनेक परंपराएं हैं। हिन्दू विवाह पद्धति में कुछ परंपराएं ऐसी हैं जिनका निर्वाह शादी में नहीं किया जाए तो शादी पूरी नहीं मानी जाती है जैसे मंगलसुत्र पहनाना, मांग में सिंदूर भरना, बिछिया पहनाना आदि।

इन रस्मों का निर्वाह शादी में तो किया ही जाता है साथ ही इन सभी चीजों को सुहागन के सुहाग का प्रतीक माना जाता है।इसीलिए हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार इन्हें सुहागनों का अनिवार्य श्रृंगार माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन श्रृंगारों के बिना सुहागन स्त्री को नहीं रहना चाहिए।

किसी भी सुहागन स्त्री के लिए मांग में सिंदूर भरना अनिवार्य माना गया है। हिन्दू शादी में बहुत से रिवाज निभाए जाते है।

शादी में निभाई जाने वाली सभी रस्मों में फेरों की रस्म सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। फेरों के समय वधू की माँग सिंदूर से भरने का प्रावधान है। शादी में मांग सिंदूर व चांदी के सिक्के से भरी जाती है। मांग भर विवाह के पश्चात् ही सौभाग्य सूचक के रूप में माँग में सिंदूर भरा जाता है। यह सिंदूर माथे से लगाना आरंभ करके और जितनी लंबी मांग हो उतना भरा जाने का प्रावधान है।

यह सिंदूर केवल सौभाग्य का ही सूचक नहीं है इसके पीछे जो वैज्ञानिक धारणा है कि वह यह है कि माथे और मस्तिष्क के चक्रों को सक्रिय बनाए रखा जाए जिससे कि ना केवल मानसिक शांति बनी रहे बल्कि सामंजस्य की भावना भी बराबर बलवती बनी रहे अत: शादी में मांग भरने की रस्म इसीलिए निभाए जाती है ताकि वैवाहिक जीवन में हमेशा प्रेम व सामंजस्य बना रहे।

घर में जरुर रखना चाहिए साबुत नमक क्योंकि....


रिलेटेड आर्टिकल
 
हमारे यहां शादी-ब्याह हो या कोई अन्य रस्म सामान सबसे पहले घर में नमक लाया जाता है क्योंकि साबुत नमक घर में रखना बहुत शुभ माना जाता है।

जब शादी में सबसे पहले गणेश स्थापना के पूर्व भी जो पूजा सामग्री रखी जाती है उसमें साबुत नमक भी जरुर रखा जाता है। वास्तु के अनुसार ऐसी मान्यता है कि साबुत नमक में पॉजिटीव एनर्जी को अपनी तरफ आकर्षित करने की क्षमता होती है। 
साथ ही यह नकारात्मक उर्जा को घर से दूर करता है। इसलिए घर में कोई भी शुभ काम करने जा रहे हों तो नमक डालकर पौछा जरूर लगाएं। साथ ही घर में हमेशा साबुत नमक जरुर रखना चाहिए क्योंकि इससे घर से कई तरह के वास्तुदोष दूर हो जाते हैं। इसीलिए घर के जिस भी कोने में वास्तुदोष दूर करने के लिए वहां एक बाऊल में भरकर साबुत नमक रखा जाता है।

मन में खिन्नता, भय, चिंता होने से, दोनों हाथों में साबुत नमक भर कर कुछ देर रखे रहें, फिर वॉशबेसिन में डाल कर पानी से बहा दें। नमक इधर-उधर न फेंकें। नमक हानिकारक चीजों को नष्ट करता है। फफूंदी भी नहीं लगने देता

शादी से पहले क्यों और किस बात का ध्यान जरूर रखना चाहिए ?

रिलेटेड आर्टिकल
विवाह के संबंध में कई महत्वपूर्ण सावधानियां रखना जरूरी है। विवाह के बाद वर-वधू का जीवन सुखी और खुशियोंभरा हो यही कामना की जाती है।

वर-वधू का जीवन सुखी बना रहे इसके लिए विवाह पूर्व लड़के और लड़की की गुणों का मिलान कराया जाता है। किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी द्वारा भावी दंपत्ति की कुंडलियों से दोनों के गुण और दोष मिलाए जाते हैं। गुण मिलान करते समय वर-वधु के छत्तीस गुण होते हैं। छत्तीस में से कम  से कम अठारह गुणों का मिलना जरू री होता है। ये गुण क्रमश: वर्ण, वश्य, तारा, योनी, गृहमैत्री, गण, भृकुट, नाड़ी है।

36 गुणों में से नाड़ी के लिए सबसे अधिक 8 गुण निर्धारित हैं। नाडियां तीन होती हैं-आद्य,मध्य और अन्त्य। इन नाडियों का संबंध मानव की शारीरिक धातुओं से है। वर-वधू की समान नाड़ी होने पर दोषपूर्ण माना जाता है तथा संतान पक्ष के लिए यह दोष हानिकारक हो सकता है। शास्त्रों में यह भी उल्लेख मिलता है कि नाड़ी दोष केवल ब्राह्मण वर्ग में ही मान्य है।

लड़की ने अपना यौवन और सौन्दर्य एक घड़े में भर दिया!!

रिलेटेड आर्टिकल

यदि किसी इंसान का अपने मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण न हो तो वह पागलपन की हदें भी पार कर देता है। क्योंकि विवेक या मेच्योरिटी से ही इंसान को सही-गलत या उचित-अनुचित का फर्क समझकर कार्य करने की समझ आती है। लेकिन यदि कोई इंसान अपने विवेक को ताक पर रख दे और पूरी तरह से अपने मन और इच्छाओं के अनुसार ही चलने लगे तो उसका हस्र उस राजकुमार जैसा ही हो जाता है जो एक सुन्दर युवती पर इस कदर आसक्त हो गया कि सही-गलत का फर्क ही भुला बैठा। आइये चलते हैं ऐसे ही एक रोचक प्रसंग की ओर जो सभी के लिये एक कीमती सबक बन सकता है...

पुरानी घटना है। जब दुनिया में राजशाही का प्रचलन था। एक राजकुमार अपने राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों के भ्रमण कर रहा था। एक गांव में एक बेहद सुन्दर युवती को देखकर उसका मन उसपर आसक्त हो गया।

शादी उसी से करूंगी जो समय का वैल्‍यू जानता हो

मैं किसी व्‍यक्ति को जज करने के लिए देखती हूं कि वह टाइम को कैसे यूटीलाइज करता है। समय बहुमूल्‍य है और हर इंसान को पता होना चाहिए कि इसका पॉजिटिव तरीके से इस्‍तेमाल कैसे किया जाए। मेरे पापा हमेशा कहते हैं कि किसी इंसान को जज करने के लिए पहले उसके जूते देखो और फिर उसकी घड़ी। लेकिन इस मामले में मेरी सोच थोड़ी अलग है।
यूं तो सोहा का नाम इन दिनों कुणाल खेमू के साथ जोड़ा जा रहा है, लेकिन ड्रीम पार्टनर के बारे में उनका कहना है कि मैं ऐसा पति चाहती हूं, जो टाइम का वैल्यू जानता हो। उसे हमेशा टाइम को मैनेज करना आता हो।





सेहत के लिए मोटापा भी अच्‍छा है

जहां पूरी दुनिया मोटापा कम करने में जुटी हुई है वहीं शोधकर्ताओं का कहना है कि सेहत के लिए मोटापा अच्‍छा है। क्‍योंकि यह लंबी उम्र की गारंटी देता है।

अमेरिका में 3.5 लाख लोगों पर हुए एक नए अध्ययन के अनुसार मोटापा कुछ मामलों में सेहत के लिए फायदेमंद है।

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक स्लिम-ट्रिम होने के चक्कर में मोटे लोग अपनी सेहत को गंभीर खतरे में डाल देते हैं।

वे पतले होने के बजाय अपना वजन और बढा बैठते हैं। क्‍योंकि वजन घटाने के लिए की जाने वाली डाइटिंग अधिकतर मामलों में कुछ खास प्रभावी नहीं होती है

पुरुषों को नपुंसक बना देता है मोबाइल

शोधकर्ताओं ने पाया कि मोबाइल फोन के अधिक इस्तेमाल से पुरूषों के शरीर में टेस्टोस्टेरोन हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है और इससे शुक्राणुओं की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। इसका असर प्रजनन क्षमता पर पड़ता है।

कनाडा के क्वींस विश्वविद्यालय के अध्ययनकर्ता रैनी शैमलॉल का कहना है कि मोबाइल फोन के अधिक इस्तेमाल से शरीर में टेस्टोस्टेरोन हार्मोन की मात्रा तो बढ़ जाती है लेकिन ल्यूटीनाइजिंग हार्मोन (एलएच) की मात्रा कम हो जाती है। यह प्रजनन के लिए आवश्यक और महत्वपूर्ण हार्मोन है। मस्तिष्क में मौजूद पिट्यूटरी ग्रंथि से यह हार्मोन निकलता है।

शोध में कहा गया है कि मोबाइल फोन से निकलने वाली विद्युत-चुम्बकीय तरंगों का पुरूषों में हार्मोन के स्तर व उनकी प्रजनन क्षमता पर दोहरा प्रभाव होता है। ये तरंगे टेस्टोस्टेरोन बनाने वाली कोशिकाओं को प्रभावित करती है और व्‍यक्ति पिता बनने से वंचित हो जाता है।

सफल शादी की भी कीमत होती है

दुनिया में हर चीज की कीमत लगाई जा सकती हैं लेकिन क्या आप आप एक सफल शादी की कीमत तय कर सकते हैं। काफी मुश्किल है यह काम। लेकिन एक नई किताब ने इसकी कीमत है 65 हजार पौंड अर्थात सलाना लगभग 48 लाख रूपए कीमत लगाई है।

डेविड ब्रुक्स की नई किताब ‘सोशल एनिमल’ ने सफल शादी के मानसिक फायदे का आकलन कर यह रकम तय की है। किताब के अनुसार सफल और स्थिर वैवाहिक जीवन बिताने वाले लोग अविवाहितों से ज्यादा संतुष्ट रहते हैं।

ब्रुक्स ने बताया शादी बहुत महत्वपूर्ण है। उनके अनुसार रिश्तों की अहमियत संपति से कहीं ज्यादा है और विद्यार्थियों को इसका अध्ययन करना चाहिए कि वे किसे अपना जीवनसाथी चुनें।

रविवार विशेष-कविता-वो सारे ज़ख़्म पुराने, बदन में लौट आए


वो सारे ज़ख़्म पुराने, बदन में लौट आए

गली से उनकी जो गुज़रे, थकन में लौट आए

हवा उड़ा के कहीं दूर ले गई जब भी
सफ़र तमाम किया और वतन में लौट आए

जो शहरे इश्क था, वो कुछ नहीं था, सहरा था
खुली जो आँख तो हम फिर से वन में लौट आए

बहार लूटी है मैंने कभी, कभी तुमने
बहाने अश्क़ भी हम ही चमन में लौट आए

ये किसने प्यार से बोसा रखा है माथे पर
कि रंग, ख़ुशबू, घटा, फूल, मन में लौट आए

गए जो ढूँढने खुशियाँ तो हार कर "श्रद्धा"
उदासियों की उसी अंजुमन में लौट आए
श्रद्धा जैन, सिंगापुर

रविवार विशेष-कविता-फसल नए जमाने की

बात नए जमाने की क्या कहूँ,हद से आगे निकल चुकी है,
अरमानों की दिवाली कभी नही मनी,कितनी होलियाँ जल चुकी है.
सपनों का शीशमहल टूटकर आज मिट्टी में मिल चुका है.
उम्मीद की आखिरी झोंपड़ी पर बुलडोजर चल चुका है.
      जिसे मैं कबीर समझा वह शख्स कमाल निकला,
      जिसे चेला समझने की भूल की मैंने,पक्का गुरुघंटाल निकला.
अपने छोटे बेटे को जब मैं गीता का श्लोक रटा  रहा था,
बड़ा सपूत अगरबती जलाकर बिपाशा की तस्वीर को दिखा रहा था,
देख ढीठाई उसकी मैंने गुस्सा में यूँ चिल्लाया 
मेरा बड़ा भतीजा दौडकर आँगन से बाहर आया.
            नैतिकता का नया पाठ अब वही पढ़ा रहा था,
            बड़ी सफाई से हजरत वह,उसी तस्वीर को आँखें मार रहा था.
अप्रिय हादसे को सूंघकर श्रीमतीजी बाहर आई,
माथे पर गहरी शिकन थी,शायद थी वह बहुत घबराई.
सुनकर करतूत सपूतों की वह अपनी आँखें झपकाने लगी,
फिर गंभीरता से लिपटकर वह मुझे समझाने लगी.
      बोली अजी ! छोडिये भी खामखा फ़िक्र मत कीजिए,
     ये फसल नए जमाने की है,इन्हें बेधड़क बढ़ने दीजिए.
माहौल जब आज बिगडों  का है,सुधरकर भला ये क्या कर पायेंगे.
हरफन में मौला इन्हें होने दीजिए,अन्यथा औरों से पिछड जायेंगे.
             --पी०बिहारी'बेधड़क',मधेपुरा

रविवार विशेष-कविता-नए सवेरे की तलाश

काश एक दिन ऐसा हो........

सवेरे-सवेरे जब मैं जागूं
हर  सुबह से बेहतर सुबह हो,
सूरज की रोशनी से इतना दम मिला जाए
हर किसी के जिंदगी में
खुशियों के लिए जगह कम पड़ जाए.
         मुझे तलाश है उस नया सवेरा की
        जिसके आते ही हर कोई मुस्काये 
        हर किसी का गम खुशियों में बदल जाये 
       कोई दुखी और कोई परेशान न हो 
       लाचार और बेबस कोई इंसान न हो.
किसी के दिल में कोई मलाल न हो 
धोखा और झूठ का कही जाल न हो
हर कोई खुशियाँ और गम सबसे बांटे 
हर दिन होली और दिवाली हो रातें.
       क्यों अपने को बड़ा जताते हो?
       खुद को सबसे बड़ा और बेहतर बताकर
       क्या मिलेगा जिंदगी में तनहा रहकर 
       जलना है तो जलो,जिंदगी में दीपक बनकर
       जो खुदको जलाकर रोशनी भरता है 
       फिर भी खुद को खुशनसीब समझता है.
कही किसी पर जुर्म और अत्याचार न हो 
किसी इंसान का दिल इतना बेरहम और खूंखार न हो 
भगवन है तो ऐसा हो ही नही सकता कि शैतान न हो
पर ऐसी कोई समस्या नही  जिसका निदान न हो 
        काश! एक दिन ऐसा सवेरा आये 
        हर कोई एक दूसरे के बारे में सोचें.
       हार जीत और मुकाबला का जकर न हो
       हार जायेंगे हम और जीत जायेगा वो 
      इस बात का किसी को फ़िक्र न हो 
मुझे तलाश है उस नए सवेरे की 
जिसमे कोई हतोत्साहित और निराश न हो.
                    --प्रीति,मधेपुरा

पुरुष महिलाओं में क्या ढूंढते हैं ?

बदलते समय के साथ पुरुषों के पसंद में भी काफी बदलाव आया है। हाल ही में हुए सर्वे में पुरुषों के पसंद के बारे में बड़ा खुलासा हुआ है।

ऑनलाइन हुए सर्वे में पता चला है कि स्‍क्रीन पर जीरो फिगर भले अच्‍छा लगता है लेकिन जब निजी जिंदगी की बात आती है तो पुरुषों को मांसल देह वाली महिलाएं ज्यादा भाती हैं।

जब मर्दों के आसपास कोई नहीं होता, तो महिलाओं के बारे में उनकी क्या जिज्ञासाएं होती हैं। यह जानने के लिए रिसर्चर्स ने विभिन्‍न देशों के 1 अरब से ज्‍यादा पुरुषों पर शोध किया।

रिसर्चर ने पाया कि पुरुषों को महिलाओं के सेक्‍सी पैर बहुत पसंद है साथ ही पतली की बजाए भरे बदन वाली महिलाएं ज्यादा पसंद आती हैं।

जबकि महिलाएं पुरुषों में सेक्‍स अपील से ज्‍यादा रोमांस पसंद करती हैं। उन्‍हें रोमांटिक पुरुष काफी पसंद आते हैं।

महिलाएं भी करती है फ्लर्ट

फ्लर्ट करने के मामलों में पुरुषों को पहले नंबर पर रखा जाता है। लेकिन हाल ही में शोध में वैज्ञानिकों ने माना है कि फ्लर्ट करने के मामलों में महिलाएं पीछे नहीं हैं।

आमतौर पर महिलाएं फ्लर्ट करने के लिए लटों को उमेठना तो कभी आंखों में आंखें डालना या फिर मादक मुस्कान बिखेरना जैसी क्रियाएं करती हैं। महिलाओं के इस तरह के चालाकी भरी अदाओं के प्रति पुरुष तकरीबन अंधे हो जाते हैं और महिलाओं के इस अंदाज को दोस्ती समझ बैठते हैं।

ज्‍यादातर पुरुष इन गैर शाब्दिक संकेतों को समझ नहीं पाते हैं और दोस्‍ती प्‍यार के बीच उलझ जाते हैं।

नटखट बच्चे खुशहाल जिंदगी जीते हैं

अगर आपका बच्चा शरारती है तो परेशान होने की जरूरत नहीं क्योंककि शोधकर्ताओं का कहना है कि जो बचपन में चुस्त और शरारती रहते हैं, वे बड़े होकर अधिक खुशहाल जिंदगी जीते हैं। ऐसे बच्चोंस को अवसाद या तनाव जैसी समस्याी नहीं होती है।

क्योंखकि बचपन वह अवस्था है जब दिमाग का विकास बेहद तेजी से होता है और बचपन में अधिक शारीरिक गतिविधियों का मस्तिष्क के विकास पर लाभकारी असर पड़ता है।

डेइकिन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि बचपन में खेलकूद में व्यस्त रहने से बच्चों में तनाव प्रबंधन कौशल के विकसित होने में मदद मिलती है और ऐसे बच्चों किशोरावस्था में भावनात्मक रूप से अधिक संतुलित रहते हैं।

हनीमून के लिए तैयार हो रहा है हिंद महासागर का तट

राजकुमार विलियम और केट की शादी दुनिया के लिए मिसाल बन गई ऐसे में हनीमून साधारण कैसे हो सकता है। सूत्रों का कहना है कि यह शाही जोड़ा इस महीने के अंत में हिंद महासागर में गुपचुप तरीके से हनीमून मनाने की योजना बना रहा है।

हनीमून मनाने के लिए हिंद महासागर के तट पर शाही इंतजाम किए जा रहे हैं। वहां वह सब कुछ होगा जो कि हनीमून स्थल पर होना चाहिए। राजकुमार विलियम के सुरक्षा अधिकारी दो सप्ताह पहले ही वहां पहुंच जाएंगे और वहां की सुरक्षा व्यवस्था देखने के साथ शाही जो़डे के लिए बंगले की व्यवस्था करेंगे।

आमतौर पर लोग समुद्र तट पर लोग सूर्यास्ती के साथ रेसिपी का आनंद लेते हैं। लेकिन शाही जोड़े के लिए हनीमून स्थल पर एक छोटा सा बार और रेस्तरां भी होगा। वे इस महीने के अंत में एक निजी हेलीकॉप्टर से वहां पहुचेंगे।

दुनिया के खूंखार आतंकवादी की भतीजी एक हसीन मॉडल

लादेन सरनेम दुनिया का सबसे बुरा सरनेम महसूस होता है। यह ओसामा बिन लादेन की वजह से हुआ। लेकिन, क्या लादेन शुरू से ऐसा था। ऐसा नहीं है उसे बचपन में वेस्टेर्न फिल्में देखना बहुत पसंद था। उसका फेवरेट एक्ट र ब्रूसली था। ऐसा नहीं है कि लादेन का पूरा परिवार ही ऐसा है।

ओसामा बिन लादेन के दूसरे भाइयों को उसके कारण शर्मिंदगी और परेशानी भी उठानी पड़ती है। लादेन के परिवार से जुड़े कुछ लोग बेहद आजाद ख्याल के हैं। ओसामा बिन लादेन की एक भतीजी वफाह दुफोर हैं, जो कि एक उभरती हुईं मॉडल हैं। यूरोप व अमेरिका की कई मैगजीनों में उसकी तस्वीरें छपती रही हैं।

फिलहाल अमेरिका की एक टेलीविजन मिडिया कंपनी वफाह दुफोर के निजी जीवन पर रियलिटी शो बना रही है।

यशोदा से कम नहीं है सुनीता का जज्बा

सुपौल , जन्म देने वाली ही अगर मा होती यशोदा का नंदलाला बृज का उजाला नहीं होता। यह दर्जा देवकी को हासिल हो जाता। जिला मुख्यालय में भी ऐसे यशोदाओं की कमी नहीं है जिन्होंने अपनी संतानों के अलावा वैसी संतानों पर भी स्नेह सुधा बरसाई है जिसे जनने वाली मां ने या तो समाज के डर से या फिर दहेज के भय से फुटपाथों पर छोड़ दिया। आलम यह है कि क्या मजाल कोई इसे गैर का बच्चा कह दे।
बात 13 सितंबर 2007 की है। अन्य दिनों की तरह निरालानगर काली मंदिर के पास एक नवजात के रोने की आवाज सुनाई दे रही थी। अन्य लोगों के अलावा यह आवाज उसी जगह पर पान की दूकान चलाने वाले कुंदन मंडल की अनपढ़ पत्‍‌नी सुनीता को भी सुनाई दी। धीरे-धीरे मंदिर प्रांगण में लोगों की भीड़ जुटने लगी। कोई उस मां को कलयुगी की संज्ञा दे रहे थे जिसने बच्ची को यहां छोड़ा। कुछ लोग दहेज प्रथा का कारण मान रहे थे। लेकिन इन सब बातों से दूर सुनीता के मन में मां की ममता मचल रही थी। लेकिन फिर उसे अपने दो संतानों के परवरिश और गुजारे के लिए एक दूकान की याद आ रही थी। अंतत: ममता ने जोड़ मारा और वह बच्ची को उठाकर छाती से लगा लिया। फिर क्या था एक बार छाती से लगाते ही ममता सागर उमड़ने लगा और वह उसे लेकर घर आ गई। काली मंदिर में वह मिली इसलिए उसका नाम कालिका रख दिया। आज वह चार वर्ष की है। सुनीता रोज सुबह उसे 9 बजे तैयार का आंगनबाड़ी केंद्र पढ़ने को भेजती है। पड़ोस के राजकुमार मंडल, महावीर मंडल, दिलीप मंडल के अनुसार सुनीता की बड़ी बेटी पिंकी और छोटी कालिका में कोई भेद नहीं कर सकता। अगर कोई कह दे कि यह बच्ची मिली हुई है तो वह लड़ाई करने पर उतारू हो जाती है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है यशोदा से कम नहीं है सुनीता का जज्बा, उनके जज्बे को सलाम।

उच्च शिक्षा से वंचित हो रहे लालगंज के लोग

प्रतापगंज (सुपौल), निप्र: वर्षो से उपेक्षित पड़े प्रतापगंज प्रखंड के सटे छातापुर प्रखंड के लालगंज पंचायत की स्थिति आज भी जस की तस बनी हुई है। प्रतापगंज मुख्य बाजार से महज तीन से चार किलोमीटर दूर उक्त पंचायत के कई गांवों के बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए आज भी प्रतापगंज आना पड़ता है। चार किमी की दूरी में दो नदियां गेंडा व मिरचईया गुजरती है। विगत कुछ वषरें पूर्व मिरचईया नदी के धरमघाट पर स्थित समविकास योजना के मद से पुल का निर्माण जैसे-तैसे कर दिया गया है। लेकिन गेंडा नदी के पड़ियाही घाट पर पुल नहीं होने के कारण अधिकांश लोग आज भी उच्च शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि यदि पड़ियाही घाट पर पुल का निर्माण करा दिया जाय तो उक्त पंचायत के कई गांव के लोगों का आवागमन सरल हो जाएगा। विडम्बना ही है कि किसी का ध्यान इस ओर नहीं जा रहा है।

कविता -सोच अपनी अपनी

सोच अपनी अपनी
कवि और डॉक्टर, दो दोस्त;मिले संयोग से,
बतिया रहे थे आपस में,पूरे मनोयोग से
पड़ी नजर कवि की,एक भिखारी पर
थी झुकी कमर और आँखें जमीं पर.
      चिंतित होकर कवि ने अपना मुंह खोला,
      यार,देख उसे,वह चबा रहा है सड़ा छोला!
      सूखी टांगें,धंसी ऑंखें,पिचका उसका गाल,
      देखा नही जाता अब, देश का बदहाल!
गंभीर होकर डॉक्टर मुफ्त की सलाह दे डाली,
परिचर्चा कर स्वास्थ्य की,नुस्खा लाख टकेवाली.
उस बेवकूफ को,अच्छे डॉक्टर से दिखवाना चाहिए,
अच्छी दवाई और पौष्टिक आहार लेना चाहिए.
   __पी०बिहारीबेधड़क(madhepuratimes)

रविवार विशेष-कविता- यमराज की बिहार यात्रा

भू-लोक की बहार देखने, यमराज जी बिहार आये
हालत देख सरकारी अस्पताल की,डॉक्टर को आँखें दिखलाये.
नाराज होकर बोले वे,एंडी रगड़-रगड़ मरीज मर रहे हैं
जो काम मुझे करना चाहिए,आप क्यों कर रहे हैं?
दार्शनिक अंदाज में डॉक्टर बोले,ये पाप के शाप झेल रहे हैं
गरीबी पाप से कम नही,तभी तो ये मौत के साथ कबड्डी खेल रहे हैं.

दूसरे दिन जेल मंत्री से जाकर तपाक से हाथ मिलाए,
आग्रहपूर्वक कहा उन्होंने,अपनी जेल में हमें पट्टा दिलवाए.
अकबका मंत्रीजी बोले,समझ में नही आया आपका यह प्रस्ताव
कई राज्य तो और भी हैं,फिर बिहार का ही क्यों चुनाव?
उत्तर मिला-दिवंगत बिहारी हमें रोज आँखें दिखलाते हैं
रंगदारी की रकम वसूलने,चिट्ठी तक भिजवाते हैं.

तीसरे दिन वे थानेदार से जाकर चायखाने में मिल पाए
बात-बात में तू-तड़ाक सुन कई बार वे सकपकाए.
बोले थानेदार अकड़कर,यह लोक है हमारा यमराज
सज्जन-दुर्जन में फर्क नहीं यहाँ,माल के हिसाब से होता है राज.
हाथ जोड़कर बोले यमराज,धन्य है तू धरती का लाल
साक्षात सामने पाकर तुझे, आज मेरा बदल गया ख्याल.
        
--पी०बिहारी'बेधड़क',मधेपुरा

तेरे बगैर लगता है, अच्छा मुझे जहाँ नहीं


तेरे बगैर लगता है, अच्छा मुझे जहाँ नहीं

सरसर[1] लगे सबा[2] मुझे, गर पास तू ए जाँ नहीं

कल रात पास बैठे जो, कुछ राज़ अपने खुल गये
टूटा है ऐतमाद बस, ये तो कोई ज़ियाँ[3] नहीं

मैं जल रही थी मिट रही, थी इंतिहा ये प्यार की
अंजान वो रहा मगर, शायद उठा धुआँ नहीं

कुछ बात तो ज़रूर थी, मिलने के बाद अब तलक
खुद की तलाश में हूँ मैं, लेकिन मेरे निशाँ नहीं

दुश्मन बना जहान ये, ऐसी फिज़ा बनी ही क्यूँ
मेरे तो राज़, राज़ हैं, कोई भी राज़दां नहीं

अंदाज़-ए-फ़िक्र और था श्रद्धाज़ुदाई में तेरी
कह कर ग़ज़ल में बात सब, कुछ भी किया बयाँ नहीं   
शब्दार्थ:
  1.  रेगिस्तान की गर्म हवा
  2.  ठंडी हवा
  3.  नुकसान
 


श्रद्धा जैन,सिंगापुर(madhepuratimes)

चाय

गम को कम करने की शायद
मुफीद जगह है चाय खाना,
जहाँ लेन-देन के मामले तय होते हैं,
बनती चाय महज बहाना.
    चाय की चुस्की लेकर अटका कार्य ,
    पुन: सरकने लगता है.
    सुस्त पड़ा  फ़ाइल फिर एक बार ,
    टेबुल पर टहलने लगता है.
नफरत,वियोग की कडवाहट और मिठास
जब आपस में घुल मिल जाते हैं,
चुस्की की मधुर ध्वनि सुन
हम खुद में खो जाते हैं.
      चाय कभी फैशन जरूर थी,
      बन गयी आज हमारी जरूरत,
      हाकिम हो या फिर चपरासी,
      हर किसी को है पीने की आदत.
मुंह अँधेरे,बिछावन पर ही
अब चाय परोसी जाती है,
पतिव्रता भी पति देवता को,
चाय से ही रिझाती है.
   आधुनिकता की पहचान यही है,
   घर-घर में यह मीठा जहर,
   इसके बिना हम असभ्य कहलाते,
   और जीना सचमुच है दूभर.
--पी० बिहारी बेधड़क,अधिवक्ता,मधेपुरा(madhepura times)

पुरुषों की रहमदिली पर आकर्षित होती हैं महिलायें

नॉटिंघम यूनिवर्सिटी में हाल में हुए एक शोध ने अब पुरुषों को अपने व्यक्तित्व पर पुनर्विचार करने का वक्त दिया है.ये नया शोध बताता है कि आप भले ही देखने में  स्मार्ट हों,आप बेहतर दिखने के लिए अपने लुक पर भले ही विशेष ध्यान देते हों,पर ये बात अब उतनी मायने नही रखती  जितना कि आपकी रहमदिली और दूसरों को मदद करने का स्वभाव.जी हाँ, अब आपका यही व्यवहार लड़कियों को सबसे ज्यादा आकर्षित कर सकता है.
आज के दौर में अधिकाँश महिलाओं का मानना है कि ज्यादातर पुरुष स्वार्थी होते हैं और अपना काम बनाने के चक्कर में रहते हैं,ऐसे में इस तरह के पुरुष किसी महिला का ध्यान स्थायी रूप से नहीं रख सकते हैं.साथ ही ऐसे पुरुषों का उद्द्येश महिलाओं के साथ सम्बन्ध बनाकर कुछ प्राप्त करना हो सकता है.बहुत सारी महिलायें ऐसे पुरुषों से बचना चाहती है.
 ऐसी स्थिति में वैसे पुरुष ही महिलाओं को आकर्षित करते हैं जो नि:स्वार्थ भाव से किसी की मदद करते दिखाई देते हैं.भाग-दौर की इस जिंदगी में परमार्थ के कार्य में तल्लीन पुरुष महिलाओं के लिए किसी आश्चर्य से कम नही होते और वे स्वत: महिलाओं को आकर्षित करने लगते हैं.महिलाओं को लगता है कि दूसरों का ध्यान रखने वाले पुरुष केयरिंग नेचर के होते हैं और उनका भी ध्यान बखूबी रख सकते हैं.
       इस शोध से एक महत्वपूर्ण बात ये भी सामने आती है कि हमारे पूर्वजों का स्वभाव दूसरों पर दया दिखाने और मदद करने वाला था,इसीलिये उस समय के सम्बन्ध चिरस्थायी हुआ करते थे.अभी पुरुषों का स्वभाव कुछ ज्यादा ही स्वार्थी हो चला है,यही वजह है कि आज के सम्बन्ध ज्यादा समय तक टिक नही पाते.

बेटियों के घर खाली हाथ क्यों नहीं जाना चाहिए?

रिलेटेड आर्टिकल
बेटियां तो बाबुल की रानियां है। मीठी-मीठी प्यारी-प्यारी ये कहानियां है। सबके दिल की सारे घर की ये रानियां है ये चिडिय़ा एक दिन फुर्र से उड़ जानीयां है... जिस तरह इस फिल्मी गीत की ये पंक्तियां दिल को छू जाती है। ठीक उसी तरह बेटियों के चहकने से घर का हर त्यौहार खुशियों से भर जाता है लेकिन बेटियों को एक दिन अपने ससुराल जाना ही पड़ता है क्योंकि यही परंपरा है।।बेटियां एक ही कुल को नहीं बल्कि दो कुलों को रोशन करती हैं। आपने बढ़े-बुजूर्गों को अक्सर कहते सुना होगा कि बेटियों के ससुराल में माता-पिता या अन्य मायके वालों को कभी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए।

दरअसल हर परंपरा के पीछे हमारे पूर्वजों की कोई गहरी सोच जरूर रही है। बेटियों की शादी में कई रस्में होती है। जिनके बिना शादी होती ही नहीं है। उन्हीं रस्मों में से एक है कन्यादान। कन्यादान शादी का मुख्य अंग माना गया है। शास्त्रों के अनुसार दान करना पुण्य कर्म है और इससे ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है। दान के महत्व को ध्यान में रखते हुए इस संबंध में कई नियम बनाए गए हैं ताकि दान करने वाले को अधिक से अधिक धर्म लाभ प्राप्त हो सके।

इसी से जुड़ी एक परंपरा और भी है वह यह कि बेटियों के घर खाली हाथ नहीं जाना चाहिए यानी बिना किसी तरह की भेंट लिए  बेटी के घर जाना शास्त्रों के अनुसार भी उचित नहीं माना जाता है। शास्त्रों में कहा गया है बेटी, वैद्य और ज्योतिष के घर कभी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए क्योंकि शास्त्रों के अनुसार इन्हें दान करने पर बहुत अधिक पुण्य फल की प्राप्ति होती है और क न्यादान के पुण्य फल में वृृद्धि होती है। साथ ही यह ज्योतिषीय मान्यता या उपाय भी है कि घर की दरिद्रता मिटाने के लिए बेटियों को दान देना चाहिए कहते हैं इससे मायके में सुख व सम्पन्नता बढ़ती है। इसीलिए कहा जाता है कि बेटियों के घर कभी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए।

धर्म में ये चार बातें हैं सबसे ज्यादा काम की

रिलेटेड आर्टिकल

धर्म के मामले में चार बातें काम की हैं- सेवा, सत्य, परहित और अहिंसा। हमारे यहां एक प्यारा शब्द है धर्मभीरू, यानी धर्म से डरने वाला। धर्म सृष्टि को धारण करने वाला शाश्वत नियम है। केवल पूजा-पाठ को पूरी तरह से धर्म नहीं माना जा सकता। वह तो उपासना है।

मनु ने धर्म के 10 लक्षण बताए हैं- धैर्य, क्षमा, दम, दस्तेय, शौच, इंन्द्रिय निग्रह, बुद्धि, विद्या, सत्य और अक्रोध। इन नियमों की आवश्यकता तो हर वर्ग, हर जाति को पड़ेगी चाहे वह हिन्दू हो, मुसलमान हो, ईसाई हो कि जैन हो। सीधी सी बात यह है कि मनुष्य को इन नियमों का पालन करना चाहिए। इन नियमों से डरना चाहिए, न कि धर्म से डरना चाहिए।

धर्मभीरू होने का अर्थ तो यही लगा लेते हैं कि धर्म से डरो, जबकि डरना धर्म के नियमों से चाहिए। ट्रेफिक पुलिस से नहीं, ट्रेफिक नियमों से डरना चाहिए। हम अपने कर्तव्य से एक अच्छी व्यवस्था को जन्म दें। यहीं से शुरू होता है सेवाधर्म। परमात्मा ने हर काम के लिए किसी न किसी को चुन रखा है, वैसे ही हम भी चुने गए हैं।

असंतुष्ट और अशांत दाम्पत्य में कैसे लाएं सुख?

रिलेटेड आर्टिकल
  • .इस समय दो तरह के दाम्पत्य चल रहे हैं। पहला अशांत दाम्पत्य और दूसरा असंतुष्ट दाम्पत्य। जो पति-पत्नी ना समझ हैं उनके उपद्रव, खुद उनके सामने और दुनिया के आगे जाहिर हो जाते हैं। वे अपनी अशांति पर आवरण नहीं ओढ़ा पाते।

दूसरे वर्ण का दाम्पत्य वह है जिसमें पति-पत्नी थोड़े समझदार या कहें चालाक हैं, लिहाजा इस अशांति को ढंक लेते हैं, उपद्रव को खिसका भर देते हैं। ऐसा दाम्पत्य असंतुष्ट दाम्पत्य है। फिर ये असंतोष स्त्री या पुरुष दोनों को ही अपने-अपने गलत मार्ग पर जाने के लिए प्रोत्साहित कर देता है। जिन्हें सचमुच घर बसाना हो वे चमड़ी की तरह एक बात अपने से चिपका लें और वह है प्रेम।

बिना प्रेम के परिवार चलाया जा सकता है, बसाया नहीं जा सकता।

सदी की सबसे महंगी शादी

शादी में जो केट कटेगा उसकी कीमत 27 लाख है। वहीं दुल्‍हन के कपड़ों पर 4 करोड़ रूपए खर्च किए गए हैं। शादी की कार्ड से लेकर शादी में जिन वर्तनों में खाना परोसा जाएगा वह भी खास है। शादी की कार्ड सोने और चांदी से तैयार किए गए हैं वहीं चीन से करोड़ों का वर्तन मंगवाया जा रहा है।ब्रिटेन के राजकुमार की शादी की चर्चा पूरी दुनिया में है क्‍योंकि कहा जा रहा है कि ऐसी शादी इस सदी में पहले कभी नहीं हुई।

यह शादी न सिर्फ दुनिया के 200 प्रभावशाली लोगों के पहुंचने के कारण महत्‍वपूर्ण है बल्कि इस शादी में 4500 करोड़ रूपए खर्च किए जा रहे हैं। पूरा ब्रिटेन अपने राजकुमार की शादी के लिए जमकर तैयारियां कर रहा है। ब्रिटेन के हर गली चौराहों को सजाया गया है साथ ही शहर के हर प्रमुख जगह पर ग्रैंड पार्टी रखी गई है।



चॉकलेट बनाता है जवां

अगर आप जवां बने रहना चाहते हैं तो डार्क चॉकलेट से परहेज नहीं दोस्‍ती करने की जरूरत हैं क्‍योंकि शोधकर्ताओं के मुताबिक सही मात्रा में खाई गई चॉकलेट मोटापे को कम करने और दिल की बीमारियों को रोकने में मददगार साबित हो सकती है।

विक्टोरिया यूनिवर्सिटी की डॉ. लिलि स्तोजानोव्स्का और डॉ. जॉन एश्टन की नई किताब, ' चॉकलेट डाइट- हाउ टू ईट चॉकलेट एंड फील ग्रेट अबाउट इट ' में यह बात कही है।

डॉक्टर लीली का कहना है कि अच्छी गुणवत्ता वाली चॉकलेट में इपीकटेचिन एंटीऑक्सिडेंट पाया जाता है, जो वसा कम करने में मदद करता है। चॉकलेट के प्रमुख तत्व कोका में थिओब्रोमाइन एल्कलॉइड भी अधिक मात्रा में पाया जाता है, जो पेशियों के उत्तेजन और उर्जा को बढ़ाने के लिए जाना जाता है, साथ ही यह रक्त वाहिकाओं को फैलाता है तथा रक्तदाब को घटाता है।

मोटी महिलाओं का दिमाग तेज होता है

मोटापा मोटी महिलाओं के फिगर को जरूर प्रभावित करता है लेकिन एक शोध में पता चला है कि मोटापा महिलाओं के दिमाग को तेज बनाता है। अमरीका के शोधकर्ताओं ने पाया है कि मोटी महिलाओं का दिमाग आम महिलाओं की तुलना में ज्यादा तेज होता है।

शोधकर्ताओं ने इसका कारण उनके दिमाग में एक खास रसायन के स्त्राव का बढ जाना बताया है। इस रसायन के स्त्राव के बढने से महिलाओं का दिमाग तेज हो जाता है।

शोध के लिए शोधकर्ताओं ने कुछ मोटी महिलाओं के बॉडी मास इंडेक्स के आधार पर प्रतिभागियों के आकार, कद और वजन को ध्यान में रख कर उनके स्कोर जमा किए । उन्‍होंने पाया कि अधिक वजन वाली महिलाओं ने बुद्धि तीक्ष्णता के मामले में दुबली महिलाओं की तुलना में ज्यादा अंक पाए।

नमक खाने से नहीं बढ़ता बीपी

आमतौर पर ब्लड प्रेशर के मरीज को नमक खाने से मना किया जाता है। ऐसे में ब्लड प्रेशर के मरीजों को स्वाद से समझौता करना पड़ता है लेकिन वैज्ञानिकों ने शोध करने के बाद पाया है कि कम या ज्यादा नमक खाने से उच्च़ रक्त चाप का कोई संबंध नहीं है। न ही ज्यादा नमक खाने से उच्च् रक्त‍चाप की बीमारी बढ़ती है।

बेल्जियम की लोवेन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने 3681 लोगों पर सालों शोध करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। इस शोध को अमेरिकन एसोसिएशन जर्नल के ताजा अंक में प्रकाशित किया गया है। लेकिन अटलांटा के वैज्ञानिक इस शोध से सहमत नहीं है उनका कहना है कि इस शोध पर अभी और कार्य करने की जरूरत है।

कविता- मन

मन
एक हूँ मैं और एक है मन
सीमित हूँ मैं,व्यापक है मन.
मेरी दुनिया बस है मुझ तक,
मन की दुनिया नील गगन तक.
इच्छाओं को पंख लगे हैं,
पहुँच नही पाती हूँ मन तक.
दबा हुआ है बोझ तले तन
पर उड़ने को आतुर है मन.
एक हूँ मैं और एक है मन.....
तन पर शासन हो सकता है,
मन पर क्या हो पाता है?
बंधन कितने ही तुम डालो
मन क्षण में उड़ जाता है.
दुःख में ही डूबे हो क्यों ना;
मन फिर भी मुस्काता है.
मन की समग्र वेदना पर
मन ही हावी हो जाता है.
हर पल,हर क्षण,सुबह-शाम
नित गीत सुहाने गाता है मन.
एक हूँ मैं और एक है मन.....
   --जूही शहाब,पुणे(madhepura times)

जय हो तेरी देवी महंगाई

जय हो तेरी देवी महंगाई,
तू ने सबके होश ठिकाने लाई|
करता मै तेरा गुणगान,
है कौन तुझसे अधिक महान|
महिमा तेरी बड़ी निराली ,
आती आगे जब कभी थाली |
बस होती रोटी दो-चार ,
सदा जीवन ऊँच-विचार |
तू सबको यह सिखलाती है,
सबको सन्मार्ग पर लती है |
प्याज के बदले काटे आलू ,
फिर भी नैन बहाती नीर |
तेरी हवा से इन मूर्खों को ,
होती देवी अतिशय पीड |
ये क्या जाने तेरा दम ,
तू करती जनसंख्या कम |
सब्जी-सी नाचीज को भी ,
तू दिलवाई अधिक सम्मान |
तेरे कारण लाल टमाटर ,
पाए माणिक-सा मान |
है नेताओं की तू हथियार ,
थर्राती है तुझसे सरकार |
निर्धनों को तू उपवास कराती ,
और सिखाती है हठयोग |
तेरी महिमा कितनी न्यारी ,
क्या जाने ये मुरख लोग |

रवि राज,दिग्घी,मुरलीगंज

कोशी नदी

कोसी  नदी
कोसी नदी बहुत पुरानी है
लेकिन नया इसका पानी है|
इसके ही तेज से है
जनपद हमारा जगमग
और इसके दम से
खेती है किसानी है|
कोसी नदी बहुत पुरानी है|
उत्तर से उतरती है
पर्वत के शिखर से
पत्थर से पिघलती
उग्रधारा हिमानी है
कोसी नदी बहुत पुरानी है|
बरसात के मौसम में
बन जाती काली कोसी
करती विनाश-लीला
आ-जाता सुनामी है|
कोसी नदी बहुत पुरानी है
लेकिन नया इसका पानी है|

__संतोष सिन्हा
बिहार प्रदेश श्रीकांत वर्मा साहित्य समिति,मधेपुरा

नसीहत

भगवान न करे आप को,
भीख मांगनी पडे ,जाइए !
कमाइए ,कमाकर खाइए ,
नेता को मत निहारिये ,
कुछ फायदा नहीं होगा |
वे पांच बरस पर बस ,
एक बार भीख मांगते है,
फिर ,मौज मस्ती में जीते है ;
सोमरस पीते हैं ,छप्पन भोग पाते हैं ;
और ,चैन की वंशी बजाते है |
सच ,नेता सर्वाहारी जीव हैं
उसकी खुराक असाधारण होती है,
उनके दिल के कई चैम्बर होते है;
वे कई संस्था के मेम्बर होते है ;
कोयला को खाते है चारा को चबाते हैं ;
पेट्रोलियम को पीते है ,अलकतरा को चाट जाते हैं|
तथापि मल मूत्र सामान्य रूप से त्यगते है ;
सुखाड़ में सोते है तो बाढ़ में जागते है |
बेधड़क बोलूंगा आजादी इन्ही के भाग्य से मिली है ,
अंग्रेज सरकार शायद इंडिया से हिली है |
--पी .बिहारी बेधड़क

ये मेरा बिहार है

बिहार दिवस पर विशेष
है कंध जो ये हिंद का
जो बुद्ध का विहार है
गूंजे छठ गीत यहीं
बहे जो गंग धार है
जो मौर्यों का शौर्य है
कुंवर का जो आधार है
गुरु की वाणी बरसे जहाँ
दिनकर की रसधार है

नदियों, रत्नों, फसलो से भरा
ये पुण्य धाम बिहार है                                                     


हुआ सत्य आग्रह शुरू यहाँ
स्वाधीनता का जो आधार है
श्रम और प्रतिभा उपजे जिधर
जो ज्ञान का भण्डार है
युव-घोष गुंजरित जहाँ
भोज-मग-मैथिल जहाँ व्यवहार है

अतुल संपदाओं से विभूषित
ये पुण्य धाम बिहार है
है राज्य बुद्धिजीवियों का ये
राजनीति का आधार है

मैं ख़ुशबू हूँ , बिखरना चाहती हूँ

कहाँ बनना, संवरना चाहती हूँ
मैं ख़ुशबू हूँ, बिखरना चाहती हूँ

अब उसके क़तिलाना ग़म से कह दो
मैं अपनी मौत मरना चाहती हूँ

हर इक ख्वाहिश, ख़ुशी और मुस्कराहट
किसी के नाम करना चाहती हूँ

गुहर मिल जाए शायद, सोच कर, फिर
समुन्दर में उतरना चाहती हूँ

ज़माना चाहता है और ही कुछ
मैं अपने दिल की करना चाहती हूँ

है आवारा ख़यालों के परिंदे
मैं इनके पर कतरना चाहती हूँ

कोई बतलाए क्या है मेरी मंज़िल
थकी हूँ, अब ठहरना चाहती हूँ

--श्रद्धा जैन,सिंगापुर(madhepura times)